आर्य और काली छड़ी का रहस्य-7
अध्याय-2
चार रहस्यमई और खतरनाक जगह
भाग-3
★★★
दोनों ही जंगल में एक रोशनी को देख रहे थे जो लगातार आश्रम से दूर जा रही थी।
“यह रोशनी किसी जलती हुई मशाल की लग रही है...” आर्य उस तरफ देखता हुआ बोला “वह बार-बार झमक भी रहीं हैं... तो ऐसा सिर्फ उसी की रोशनी के साथ होता है।”
“इसका यही मतलब निकल कर आता है कि कोई इस वक्त जंगल में आश्रम से दूर जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं होता। कोई भी जंगल में नहीं जाता।” हिना बोली और एक बार जंगल की तरफ देखने के बाद तेजी से दीवार पर दौड़ने लगी।
वह आश्रम के पिछली दीवार पर मौजूद दरवाजे की ओर जा रही थी। आर्य भी उसके पीछे पीछे दौड़ पड़ा। हिना वहां पहुंची तो उसने झुककर नीचे देखा। आश्रम का पिछला दरवाजा खुला हुआ था। आर्य भी उसके पास आया और नीचे झुककर देखा। उसने भी आश्रम का खुला हुआ दरवाजा देखा।
“मुझे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा है ऐसा हो रहा है।” हिना बोली “यह बिल्कुल नामुमकिन है। बिल्कुल नामुमकिन, यहां तक कि अपनी आंखों से देखने के बावजूद मैं इस पर यकीन नहीं कर पा रही।”
आर्य ने उसी पल कहा “मगर हम इसे झुठला नहीं सकते। ना ही इसे किसी तरह से नजरअंदाज कर सकते हैं। यह कोई कल्पना भी नहीं, अगर कल्पना होती तो हम दोनों को एक जैसी चीज ना दिखती। फिर यह नीचे का दरवाजा भी खुला हुआ है, यह भी हमें खुला हुआ ना दिखता।”
“लेकिन... लेकिन यह हमारा वहम भी तो हो सकता है। और वही बात नीचे खुले दरवाजे की, तो इस दरवाजे को मैंने खोला था। क्या पता आज मैंने इसे बंद ही नहीं किया। इसके बाद हवा का झोंका आया और उसने यह दरवाजा खोल दिया।”
“लेकिन यह दरवाजा बाहर की तरफ खुलता है। आश्रम के अंदर से हवा का धक्का बाहर की ओर नहीं लग सकता। फिर दिन में जब तुम दरवाजा खोल रही थी तब तुमने काफी जोर लगाया था। आज पूरा दिन हवाओं में इतनी गति नहीं थी कि वह एक भारी-भरकम दरवाजे को खोल सके, अब भी हवाएं इतनी जोरदार नहीं।”
दोनों वापिस सामने की तरफ देखने लगे। उन्हें अभी भी वह चीज दिखाई दे रही थी जो कुछ देर पहले उन्होंने देखी थी। किसी मशाल की जलती चमक जो लगातार जंगल में आश्रम से दूर जा रही है।
हिना दीवार पर इधर उधर चलती फिरती बोली “यहां आश्रम से कोई इस वक्त बाहर गया हैं। लेकिन आश्रम से बाहर जाना सख्त मना है। जंगल की ओर जाना तो उससे भी ज्यादा सख्त मना है। आश्रम के आचार्य तक जंगल में जाने से खौफ खाते हैं।”
आर्य ने अपने दोनों हाथ फैलाते हुए हिना को सवालिया अंदाज में कहा “फिर किस में इतनी हिम्मत... जो जंगल में इतनी रात को जा रहा है? और उसका मकसद क्या होगा...?”
“मैं नहीं जानती” हिना अपनी जेब टटोलने लगी। उसने जेब से अंगूठी निकाली और उसे सामने की तरफ किया। वह आश्रम के बने सुरक्षा चक्र को देख रही थी, जो जंगल में भी लाल रोशनी से चमकता हुआ दिखाई दे रहा था। उसने देखा मशाल की जो रोशनी थी वह उस लाल चक्कर की ओर लगातार बढ़ रही थी। उसने आर्य से कहा “अगर यह आश्रम का कोई सदस्य है, और उसे अपनी जान प्यारी है तो वह चाहकर भी इस लाल घेरे से बाहर नहीं जाएगा। क्योंकि इसके बाहर निकलते ही अंधेरी परछाइयां उसे मार देगी। जंगल के जंगली जानवरों से बचा जा सकता है, मगर अंधेरी परछाइयों से बिल्कुल भी नहीं।”
आर्य भी हिना के पास आया और अंगूठी के अंदर देखने लगा। धीरे धीरे रोशनी लाल घेरे के और पास हो रही थी। दोनों की धड़कनें पूरी तरह से बढ़ चुकी थी। दोनों के दोनों एक ही दृश्य पर नजरें टिकाए हुए थे। तभी रोशनी लाल घेरे के और नजदीक हुई और दोनों की धड़कनें पूरी तरह से रुक गई। हिना ने अपने दिल पर हाथ रख लिया। अगले ही पल वह रोशनी उस लाल घेरे के पार चली गई। “नहीं...” हिना ने अपना अंगूठी वाला हाथ झटक दिया। “अब यह जो भी कोई था सुबह इसकी मरने की खबर मिलेगी। मैं सोच भी नहीं सकती इस आश्रम में कोई इस तरह की हरकत करेगा। यह बच्चों में से ही कोई एक होगा, जिसे अपनी जान प्यारी नहीं होगी। चलो जाकर आश्रम के आचार्य से इसके बारे में बात करें... और उनसे मदद मांगें। हमें अभी के अभी इस बच्चे की जान बचानी होगी।”
“हां चलो।”
दोनों ही किले की दीवार से नीचे उतरे और पगडंडी पर चलते हुए आश्रम के आचार्यों से मिलने के लिए चल पड़े।
हिना चलते हुए बोली “इस तरह की समस्या का हल या तो अचार्य वर्धन कर सकते हैं, या फिर आचार्य ज्ञरक। और वह दोनों ही इस वक्त कार्यालय में मिलेंगे। रात के 11:00 बजे से पहले वह दोनों ही आचार्य कार्यालय से बाहर नहीं निकलते।”
जल्द ही दोनों चलते हुए कार्यालय तक पहुंच गए। कार्यालय आश्रम में बीच वाली गुफा के थोड़े ही पास बना हुआ था। हिना ने कार्यालय का दरवाजा खोला तो नीचे उतरती हुई सिढिया दिखाई दी। पीली रोशनी से चमक रहा कार्यालय पूरी तरह से गर्म था। यहां आने के बाद ऐसा लगता ही नहीं था कि बाहर ठंड है या यह पूरी जगह बर्फीली वादियों में बनी हुई है। दोनों ही नीचे उतरे तो आर्य को पूरा कार्यालय दिखा। जमीन के नीचे बना यह कार्यालय किसी भी अंग्रेजों के जमाने के शाही कमरे से कम नहीं था। यहां प्रिंसिपल के दफ्तर की तरह कुर्सी और टेबल पड़ा था। टेबल पर कांच की प्लेट भी थी। दिवारें लाल रंग से पुती हुई थी जिस पर भातीं भातीं की तस्वीरें थी। कमरे के अंदर अंगीठी भी बनी हुई थी जिसमें जल रही लकड़ियों की वजह से पूरा कार्यालय गर्म था। यहां सब था लेकिन वह नहीं जिनकी बात हिना कर रही थी। यहां दोनों ही आचार्य नहीं थे।
हिना पूरे कमरे को एक ही नजर में देखते हुए बोली “कमाल है, दोनों ही आचार्यों को तो इस वक्त यही होना चाहिए। मैं पिछले छह महीनों से देखती आ रही हूं, दोनों ही आचार्य इसी कार्यालय से ठीक 11:00 बजे एक साथ बाहर निकलते हैं। मैं रात के 11:00 बजे तक दीवार पर टहलती हुं तो अक्सर उन्हें बाहर निकलते देखा है।”
आर्य ने अनुमान लगाते हुए कहा “क्या पता आज उन्हें कोई काम आ गया हो... वह आश्रम में कहीं और होंगे...।”
“हां शायद...” हिना ने आर्य की बात पर सहमति भरी मगर वह अभी भी सक्षयं में थी। उसने आर्य से कहा “चलो हम आश्रम में उन्हें कहीं और ढूंढते हैं....” इतना कहकर वह वापिस बाहर निकल पड़ी। उसके साथ आर्य भी बाहर निकल पड़ा।
बाहर दोनों ही उस तरफ चल पड़े जहां आश्रम के आचार्यों की बस्ती थी। दोनों ने बाड़ से घिरी एक पगडंडी का सफर तय किया और आचार्यों की बस्ती पहुंच गए।
हिना वहां एक झोपड़ी की तरफ बढ़ती हुई बोली “यह अचार्य वर्धन की झोपड़ी है। अगर वह अपने कार्यालय में नहीं है तो उनके यहां होने की संभावना हो सकती है।” इतना कहकर उसने झोपड़ी का दरवाजा खोल दिया। अंदर कोई भी नहीं था। हिना ने अपने बालों में हाथ फेरे “वो यहां नहीं है।” उसने फौरन दरवाजा बंद किया और उसी वक्त बोली “चलो हम अचार्य ज्ञरक की झोपड़ी देख लेते हैं। अगर अचार्य वर्धन यहां नहीं है तो वहां जरूर होंगे।”
इस झोपड़ी के साथ लगते ही दूसरी झोपड़ी थी। हिना वहां गई और उस झोपड़ी का दरवाजा खोला। मगर वहां भी कोई नहीं था। वह भी पूरी तरह से खाली थी।
आर्य ने भी झोपड़ी के अंदर झांक कर देखा। जब उसने खाली झोपड़ी देखी तो कहा “तुम्हें नहीं लगता हमें किसी और आचार्य से बात कर लेनी चाहिए। मुझे याद है, यहां बताया गया था कि कुल 11 आचार्य हैं। चलो इनमें से किसी और से बात कर लेते हैं।”
हिना ने तुरंत सासं बाहर की तरफ छोड़ी “यह भी बुरा आईडिया नहीं। चलो हम किसी और आचार्य से ही बात करते हैं।”
दोनों ही वहां आचार्यों की बाकी झोपड़ीयों की तरफ चल पड़े। उन्होंने तीसरी झोपड़ी का दरवाजा खोला तो वह भी खाली थी। हिना के माथे पर आई लकीरे अब और भी भयानक रूप ले चुकी थी।“ कमाल है, आचार्य वीरसेन भी यहां नहीं।”
वह तुरंत और झोपड़ियों की तरफ मुड़ी लेकिन उन्होंने जिस भी झोपड़ी का दरवाजा खोला वह खाली ही दिखी। आर्य खाली झोपड़ियों को देखकर दंग होते हुए बोला “यहां तो मुझे आश्रम में कोई भी अचार्य दिखाई नहीं दे रहा। हम अब तक 8 झोपड़िया देख चुके हैं लेकिन सब की सब खाली पड़ी। आचार्य यहां आश्रम में इधर उधर चलते फिरते भी नहीं दिख रहे। आखिर सबके सब गए कहां...?”
“मुझे भी कुछ समझ नहीं आ रहा। आश्रम में 11 आचार्यों में से तीन महिला आचार्य भी हैं। मेरे ख्याल से अब हमें उनकी झोपड़िया भी देख लेनी चाहिए।”
हिना ने अपनी दिशा बदली तो आर्य भी उसके पीछे-पीछे हो गया। जल्द ही उन्होंने लड़कियों की बस्ती के आगे बनी बाकी के तीन आचार्यों की झोपड़ियां देखी। वह भी खाली पड़ी थी।
आर्य ने सभी खाली झोपड़ियों को देख कर संकोच के साथ कहा “यह आश्रम में ना तो आचार्य अपने कमरे में, ना ही आचार्या, कहीं....”
“कहीं क्या...” हिना तुरंत झपटती हुई बोली।
“कहीं अंधेरे ने हमला तो नहीं कर दिया।”
“नहीं। अगर ऐसा होता तो यहां पूरे आश्रम में कोहराम मचा होता। आश्रम पूरी तरह से शांत है, विधार्थी भी हमें इधर-उधर चलती हुई दिखाई दे रहे हैं। बस आश्रम में कोई भी अचार्य नहीं दिखाई दे रहा।” तभी अचानक हिना के दिमाग में कुछ आया और वह चुटकी बजाते हुए बोली “एक बात तो तुम्हें बताना भूल ही गई, हमने खाना खाने के बाद सूचना पट्ट तो देखा ही नहीं”
“सूचना पट्ट!! यह क्या चीज होती..हैं।”
“आओ बताती हूं। हमें वापिस भोजनालय जाना होगा।” दोनों ही एक बार फिर से भोजनालय की तरफ चल पड़े। वह दोनों ही भोजनालय पहुंचे तो वहां उन्हें बाहरी दीवार पर काले रंग का बना बोर्ड दिखाई दिया। उस पर सफेद चोक में सूचना लिखी हुई थी। हिना ने उसे देखा और कहा “इसीलिए आश्रम में इस वक्त हमें कोई भी अचार्य दिखाई नहीं दे रहा। आचार्यों के साथ-साथ गुरु भी हमें आश्रम में नहीं मिलेंगे।”
आर्य ने अभी तक बोर्ड पर लिखी सूचना नहीं पढ़ी थी। वह आगे आया और बोर्ड पर लिखी सूचना पढ़ी। उस पर लिखा था आज आश्रम के सभी आचार्य और गुरु सुरक्षा चक्र को शक्ति देने के लिए गुफा में बने मंत्र कक्ष के अंदर मंत्रों का उच्चारण करेंगे। इसलिए रात के 10:00 बजे से लेकर सुबह के 7:00 बजे तक ना तो आचार्य से मिला जा सकता है, ना ही किसी गुरु से। आर्य उसे पढ़कर बोला “इसका तो यही मतलब निकल कर आता है कि हम सुबह तक किसी भी तरह की मदद हासिल नहीं कर सकते।”
हिना नम शब्दों में बोली “अगर किसी तरह की मदद नहीं मिलेगी, तो उसे भी नहीं बचाया जा सकता जो आश्रम से बाहर गया है।” आर्य एकटकी लगाकर उसे देखने लगा। हिना आगे बोली “हममें से किसी में भी इतनी क्षमता नहीं जो सुरक्षा चक्र के बाहर अंधेरी परछाइयों का सामना कर सके।” इतना कहने के बाद उसकी आंखों से आंसू छलकने लगे। आर्य ने उसके कंधे पर हाथ रखा और उसे संभलने के लिए कहा।
तभी पीछे से कुछ आवाजें आने लगी। दोनों एक साथ मुड़े तो देखा रसोई घर के पास काफी सारे छात्र शोर मचा रहे थे। दोनों ने हीं एक दूसरे की तरफ देखा और शोर की तरफ दोडे़। रसोई घर आश्रम में पीछे की तरफ बना हुआ था। उससे और पिछली दीवार के बीच की दूरी ज्यादा नहीं थी। वही दरवाजा भी पास ही लगता था।
दोनों ही वहां पहुंचे तो 18 से 20 छात्र असमंजस में एक दूसरे से कुछ ना कुछ पूछ रहे थे। वह सभी छात्र रसोई घर में खाना बनाने वाले कपड़ों के अंदर थे। हिना और आर्य तुरतं उन लोगों के पास पहुंचे। हिना ने आगे बढ़कर एक छात्र से पूछा “क्या हुआ सब ठीक तो है ना....”
“नहीं... कुछ भी ठीक नहीं है।” उस छात्र ने तुरंत जवाब दिया “यहां भोजनालय से एक लड़का गायब है। पूछताछ की तो पता चला वह जंगल की तरफ गया है।”
हिना आर्य से बोली “शायद हमने कुछ देर पहले जिसे देखा था वो यही लड़का होगा।” उसने छात्र से पूछा “कौन था वह लड़का और उसका नाम क्या था?”
लड़के ने याद करते हुए जवाब दिया “मैं उसे ज्यादा नहीं जानता था... वह खाना पकाता था और उसका नाम...” लड़के ने अपने दिमाग पर और जोर डाला “ नाम... उसका नाम आयुध..था”
आयुध। अचानक यह नाम सुनते ही हिना की सांसे पूरी तरह से थम गई। वह बेधड़क घुटनों के बल जमीन पर गिर गई। आर्य ने नीचे गिरती हिना को संभाला। आर्य ने उससे पूछा “कौन है यह आयुध...”
हिना ने काफी धीमे स्वर में बताया “मेरा भाई था...”
★★★
यह सुनकर आर्य पूरी तरह से चौंक गया। आज उसका पहला ही दिन था और यह सब हो रहा है। उसने हिना से पूछा “मगर वह जंगल में क्यों गया है... आखिर उसके जाने की क्या वजह हो सकती है..?”
“मैं नहीं जानती। वह ऐसा बिल्कुल नहीं करता। 6 महीने पहले ही मेरे साथ आया था, लेकिन आने के बाद कभी भी ऐसा नहीं किया।”
“फिर अचानक..!!” यह सब क्या हो रहा है इसके बारे में ना तो आर्य को कुछ पता था ना ही हिना को। दोनों इस सवाल का जवाब भी नहीं जानते थे कि हिना का भाई बाहर जंगल में क्यों गया है।
अचानक हिना अपनी जगह से खड़ी हुई और बोली “मुझे अपने भाई को वापस लेकर आना होगा...। मैं जाकर उसे जंगल से लेकर आऊंगी।” हिना इतना कहकर दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी।
आर्य तेजी से दौड़ कर उसके आगे आया और उसका रास्ता रोका “लेकिन तुम जानती हो ना जंगल कितना खतरनाक है। तुमने कहा है कि वहां जाने के बाद बचने की कोई संभावना नहीं, फिर तुम्हारा भाई तो गया भी सुरक्षा चक्कर के घेरे से बाहर है।”
हिना ने आर्य को नकारते हुए उसे एक तरफ किया और वापस आगे बढ़ने लगी “मैं इन सब के बारे में कुछ भी नहीं जानती। लेकिन मेरी जिंदगी में मेरे भाई के सिवा और कोई भी नहीं, और चाहे कुछ भी क्यों ना हो जाए, मैं उसे एक आंच तक नहीं आने दूंगी।”
हिना तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी। आर्य फिर से उसके बराबर आया और उसे समझाते हुए बोला “मगर हिना यह खतरे से खाली नहीं होगा। तुम वहां अगर कोई मुसीबत आती है तो उसका कैसे सामना करोगी...?”
हिना रुकी और एकदम से आर्य की तरफ देखते हूए बोली “मैं यहां आश्रम में पिछले 6 महीनों से हूं। इन छह महीनों में मैंने थोड़ा बहुत जादू सीखा है। मुझे उम्मीद है वह जादू मेरे काम आएगा।”
हिना किसी की भी सुनने को तैयार नहीं थी। छात्रों के समूह में से कुछ छात्र आगे आए और बोले “लेकिन हिना हम आचार्यों की मदद भी ले सकते हैं। अगर हममें से कोई गुफा में जाकर उन्हें इन सब के बारे में सूचित करें तो वह मदद के लिए आगे आ सकते हैं।”
“उन्हें सूचित करना मुश्किल है।” हिना बोली “गुफा के अंदर जाना भी खतरे को दावत देना है। फिर वहां जाकर आचार्यों को बताने में जो टाइम लगेगा, तब तक काफी देर हो जाएगी। मेरा भाई, मेरा भाई और भी ज्यादा दूर निकल जाएगा। फिर हम उसे कभी वापस हासिल नहीं कर सकेंगे। मुझे जंगल में जाना ही होगा।”
हिना दुबारा से आगे बढ़ने लगी। वह दरवाजे के पास पहुंची और दरवाजे को धक्का मार कर खोल दिया। दरवाजे को खोलते ही उसके ठीक सामने काला जंगल था। अंधेरे में डूबा काला जंगल। हिना ने अपनी आंखें बंद कर गहरी सांस ली और जंगल की तरफ बढ़ पड़ी। वह कुछ कदम ही चली थी तभी पीछे से आर्य ने उसे आवाज लगाई “रुको हिना...”
हिना के चलते हुए कदम रुक गए। आर्य ने वहां एक छात्र से जलती हुई मशाल पकड़ी और बोला “तुम वहां अकेले नहीं जाओगी। मैं भी साथ चलूंगा।”
यह सुनकर आश्रम के सभी छात्र स्तब्ध रह गए। यहां तक कि खुद हिना भी अपने आप पर विश्वास नहीं कर सकी। वह भी स्तब्ध रह गई। आर्य आगे बढ़ा और उसके पास आकर दोबारा बोला “तुम अकेले किसी भी खतरे में नहीं फसोगी। तुम्हारे भाई को हम साथ में लेकर लेकर आएंगे।”
हिना उसकी आंखों में देखने लगी। “लेकिन जंगल खतरों से कम नहीं...”
आर्य ने जंगल में सामने की ओर देखा। “तुमने कहा ना तुम्हें जादू आता है.... तो उम्मीद करेंगे वह हमारे काम आए।” जंगल की तरफ देखते वक्त उसके चेहरे पर उम्मीद दिखाई दे रही थी। एक ऐसी उम्मीद जो ना सिर्फ उसके अंदर के हौसले को दिखा रही थीं, बल्कि हिना भी उसे देख कर खुद में अलग ही तरह का आत्मविश्वास महसूस कर रही थी। हिना ने आर्य का हाथ पकड़ा लिया। वह दोनों ही जंगल में जाने के लिए तैयार थे।
★★★
Horror lover
18-Dec-2021 04:43 PM
Kafi achchi kahani h aapki ...
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रतन कुमार
18-Dec-2021 04:34 PM
बेहतरीन कहानी है
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Seema Priyadarshini sahay
13-Dec-2021 12:40 AM
रोचक भाग।बहुत ही खूबसूरत कल्पना कर के लिखी गई रचना।
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